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मेरी दुनिया

तुम मेरी दुनिया हो..
दुनिया समझती हो ना..
भगवान का बनाया हुआ वो बक्सा जिसमें
भरे पड़े है बीसीयों देश,सैकड़ो नदियां
और कई पहाड़..
मैं भी किसी जुनूनी लड़के की तरह
अक्सर कोशिश करता हूँ कि
घूम लूं ये पूरी दुनिया..
लेकिन अटक जाता हूँ
किसी एक जगह पर…
जिसे निहारते निहारते
बीत जाता है सारा वक्त..
तुम्हारी आंखे अमरीका है
और दिल रूस
बिल्कुल भी नहीं बनती दोनों की…
तुम्हारा ललाट और तुम्हारे पांव
उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव है
खिले रहते है तब तक
जब तक मैं साथ हूँ
बिछोह के बाद छा जाता है
घना अंधेरा,देर तलक…
तुम्हारे दोनों कान जो कि झूमर बंधे है
उत्तरी कोरिया और दक्षिणी कोरिया है
डर लगता है इनसे कुछ गलत कहने में..
तुम्हारे होंठ भारत है जीभ अफगान
और दांत हिंदुकुश की पहाड़ियां..
तुम्हारे गाल और ओंठ के नीचे का तिल
श्रीलंका और नेपाल,बहोत छोटे
लेकिन इनके बिना कुछ भी नहीं..
तुम्हारी गर्दन के नीचे है हिन्द का सागर
तुम्हारी छातियों के सफेद पहाड
वो जगहें जहां की बर्फ कभी नहीं पिघलती…
तुम्हारी पीठ का ये फिसलन वाला इलाका…
फ्रांस का वो शहर है जिसे पेरिस कहते है..
चूमते चूमते सदियां गुजार दो चाहे…
तुम्हारी कमर के ठीक ऊपर है एक खाली वृत
ये वहीं बरमूडा ट्रायंगल है अंधेरे में जहाँ
मैं अक्सर खो जाता हूं और खुद को भी नहीं मिलता..
तुम्हारे जिस्मों-दिल के वे हिस्से जो आज भी ज़ख्मी है
वो जो अक्सर पुरानी बातें छेड़ देते है
वो हिस्से जो तुम्हारी और मेरी शांति के दुश्मन है
वो हिस्से,मुझे जिनसे प्यार भी है नफरत भी
बस वही, हां वही पाकिस्तान है।
—धीरज दवे

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