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“कैंसर”

और फिर यूँ होगा इक दिन कि
सब लोग मर जायेंगे कैंसर से
बच्चे,बूढ़े,औरतें खत्म हो जाएंगे
फ़क़त खाना खाकर,पानी पीकर
दवाई लेकर…
किसी को नहीं मिलेगा दफनाने वाला
जलाने वाला…
यहाँ तक कि गिद्ध भी बोटियाँ नहीं खाएंगे
जमीनों से कीड़े निकलेंगे…
मसानों से गांठे…
और झाड़ पर उगेगी खून पीती हुई लटे..
कटी हुई छातियाँ,सूजे हुए पेट, सड़ी हुई आंते
पड़ी होगी बावड़ियों में..
तालाब और समंदर लाशों से अटे होंगे..
मंदिरों-मस्जिदों में फटे कपडे
और हजारों जुड़े हुए हाथ
सिर्फ हाथ
सिर्फ हाथ
बना रहे होंगे अपनी परछाई
और वही कही एक बड़े बंगले में
पड़ा होगा दुनिया का आखिरी आदमी
अपनी गोद में माँ-बहुँ-बेटे-बेटियों
की लाश लेकर
औऱ फूंक रहा होगा वो कागज
जिसपे लिखा था उसने…
“मिलावट करके पैसे कमाए जाते है”