गली-गली में भटक रहा है एक दीवाना रजनी का
शाम ढले ज्यूँ घर आता है रूठा साजन सजनी का
तारे-जुगन यार है इसके इन तीनो की तिकड़ी है
ठंडी ठंडी पवन बताती के चंदा-रजनी जिगरी है
रजनी की बाहों में जब उसकी आंखे लग जायेगी
हवा थपकियां देगी उसको रजनी गीत सुनाएगी
दिन में जब इस घर का ताला सूरज चाचा खोलेंगे
आंखों में अंगारे होंगे वो गुस्से मे कुछ बोलेंगे
तब रजनी के गालो पर हल्की लाली आ जायेगी
चंदा भी शर्माएगा और रजनी भी शर्माएगी
हाथ पकड़ भागेंगे दोनों दूजे कोने जाएंगे
सूरज चाचा जब न होंगे शाम ढले फिर आएंगे
इनका साथ अमर है इनकी प्रीत अमर है बरसो से
चंदा और रजनी का जग में नाम अमर है बरसो से
Author: Dheeraj Dave
“नज़्म”
किसी रोज छत के उस हवादार कमरे में
जहां गिर रही हो चाँदनी झरोखों से
और चूमती हो शेल्फ के झूठे परिंदों को
तुम खींचती हो कैनवास पे रंगीन चेहरों को
और एक कोने में बैठकर
मैं लिख रहा हूँ जान की बेजान बातो को
सोचता हूँ यूँ ही कभी उस सर्द फर्श पर
सो जाओ तुम मेरे लफ़्ज़ों में लिपटकर
और मैं तुम्हारी कूचियों संग करवटें बदलू
नज़्मरात के उस स्याह कागज पर मेरी उंगलियों से
तुम बनाओ इश्क की ज़िंदा पैकरी, और
मैं लिखू वो नज़्म तेरी पीठ पर
जिसको पढूं मैं और रटू मैं उम्रभर….
रे चन्दा!
Listen my rajasthani Poem In my voice…
“मैं और तू”
जान के घरौंदे पर उल्फतों की बारिश में
आके चल भिगोये खुद को यूं
मैं और तू…….
अब जमाने से हो क्यूँ भला वास्ता
हमने पा ही लिया इश्क का रास्ता
इश्क वालो को क्या आरजू
मैं और तू……
कल रहे ना रहे हाथ गर हाथ में
हम रहे ना रहे इस तरह साथ में
छोड़ कर सारे गम ले सुकूँ
मैं और तू……
“किनारे” My Words My Voice
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“सुरमई श्रीदेवी को श्रद्धांजलि”
“इश्क का मजहब”
इश्क का मजहब नहीं है
इश्क खुद मजहब ही है
प्रेम की पाती है गीता
याद में जलना हवन है
अश्रु पंचामृत सरीखे
और खुदा महबूब है
प्यास को पायस समझना
आह वेदों की “ऋचाएं”
यार की सांसे है “आयत”
और दुआ महबूब है