और फिर यूँ हुआ एक दिन
की मैंने तुम्हारी याद के जाड़ो में काँपते हुए
पहन ली तुम्हारी दी हुई वो तुम्हारी पसंदीदा कमीज
ठीक वैसे ही पहनी जैसे तुम कहती थी
अधचढी बाहें, और
पतलून में खसोटा हुआ आखिरी हिस्सा
मेरी गर्दन के पास का पहला और दूजा बटन भी खुला
तुम्हें पसंद था न जब अटकती थी इनमें
मेरी वो रुद्राक्ष की माला
सुनो! फिर भी
तुम्हारी याद के पोखर में डुबकियाँ लेकर
मेरे माजी की अस्थियों को सुकूँ न मिला
जैसे प्यास बुझाने को पानी ही जरूरी है
भूख मिटाने को फकत रोटियाँ ही काम आती है
ठीक वैसे ही मुझे बस तू चाहिए
तेरी यादगारों से अब चैन नहीं मिलता
और मेरे इश्क की कब्र भी
तेरी सांसो से फातिहा सुनने को उतावली है
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“Violin”
मेरे वायलिन की टूटी हुई बॉ अक्सर पूछती है मुझसे
ये क्या हो गया है तुमको
ये क्या कर रहे हो आजकल
मेरे षड़ज, मध्यम और पंचम बिखरे पड़े है
और तुम हो कि पढ़ रहे हो
बाबर,हेमू,अकबर की लड़ाइयां
खिलजी का प्यार
कभी COB कभी EOD
कभी ATM के dispute
कभी RTGS की चिंता
तुम्हे कभी rDNA technology सोने नहीं देती
और कभी तुम जाग जाते हो
फकत trignometry के लिए
याद करो आखिरी बार तुमने कब गुनगुनाया था
याद करो तुमने कब लिखा था कुछ भी
देख कर ताज गधो के सर पे
ये कैसी शिकन तैरती है तुम्हारे माथे
बेरुखी की इम्तिहां है ये की
मैं टूटी हुई हूँ और तुम
न दिखाते हो मुझे और न सहलाते कभी भी
सुनो! एक रोज मर जाआगे
खत्म करके हज़ारो चाहते खुद के दिल में
किसी के ख़्वाब, किसी की उम्मीद,किसी की चाहत
तुम्हारे सांसो में घुलती जा रही है जहर की मानिंद
कभी तुम चूमते थे मुझको बस इसी की खातिर
मेरी गुजारिश है कि इक बार फिर से जी के देख लो तुम
सुना होगा कभी तुमने मगर मैं फिर से कहती हूँ
जमाने की रोशनी के लिए
समझदार खुद की झोंपड़ी नही जलाते
Bookmarks
तुमने उस रोज किताबों के साथ,अपने हाथों के बनाये हुए जो bookmarks भेजे थे
सुनो! उनको समझकर कचरा, मैंने फेंक दिया था कूड़ेदान में
मुझे आज समझ आया है कि वो bookmarks
किताबों में काम आते है पसंदीदा पन्नो को रोकने के लिए
तुम बहुत सयानी हो मेरी जान
किसी रोज ज़िन्दगी की किताब की खातिर भी 2-4 bookmarks बनाओ
वो हमारी फ़ोन पर पहली बार की हुई बात
वो कॉलेज की लाइब्रेरी की मुलाकात
वो तुम्हारा भेजा हुआ टीशर्ट का तोहफा
और तुम्हारे हाथों से छीनकर खायी थी जो कैडबरी मैंने
वो सारे पन्ने मुझे इक बार फिर से पढ़ने है
और हां ये वादा है मेरा
मैं तुम्हारे एक भी bookmaarks को जाया नहीं होने दूँगा
“श्रृंगार को रहने दो”
टीका,नथुनी,बिंदिया,बाली सब झूठे है
मुझको तेरी अँखिया ही चंदा तारे है
चेहरे के उजलेपन से भी क्या लेना है
सियाही भी तो नशा रात सा रखती है
तेरे गालो के दागों मे अल्हड़पन है
जिनमें दुबके एक गिलहरी रहती है
बालो को गर्दन से उलझा रहने दो
मुझको इनकी सुलझन उलझन लगती है
साड़ी का पल्लू गर उल्टा बांध दिया
आ पास मेरे मैं ही सीधा कर देता हूँ
कमरबंद के मोती आखिर क्यूं देखूं
मेरी नज़रे एक घाटी पे नज़रबंद है
तेरी पायल की कड़ियाँ गर टूट गयी है
तू ही हँस दे वो भी तो छन-छन जैसा है
बिछियां भी गर तेरी जूनी हो बैठी
छोडो इनको मुझको फिसलन में चुभती है
ये बातें-वो बातें, ये करना है वो करना है
ये पहनूँगी-ये बांधूंगी,मैं थोड़ी देर में आऊंगी
आखिर इन सबका क्या करना
जब प्रीत चढाए लहरों में,सागर से सरिता मिलती है
जब ओढ़ हवा की चुनरिया निशा चाँद से मिलती है
कब कहती है कि रुक जाओ,कब कहती है कि जाने दो
तुम भी जैसी हो वैसी आ जाओ श्रृंगार को रहने दो
तुम भी जैसी हो वैसी आ जाओ श्रृंगार को रहने दो
A Tribute from my side to “Ravindranath tagore”
“चाँद”
तुम अक्सर पूछती हो ना मुझसे
रात में जब भी मेरी आँख खुलती है
तुम क्यूँ जागते मिलते हो मुझको
सुनो! मुझे अपने मुकद्दर पे भरोसा नहीं होता
तुम्हारी करवटे, तुम्हारी अकड़न
तुम्हारी उंगलियों की फिसलने भी
मेरी खातिर तो जिन्दा ख्वाब है बस
तुम्हे सोया हुआ जब देखता हूं
मैं तुमको देखने को जागता हूँ
ये दुनिया देखती है चाँद को
अपनी खिड़कियों में झाँकता सा
और अकेला शख्श हूँ मैं इस जहाँ का
जो चादर की सयानी सिलवटों में
“चंदा” को लिपटते और सोते देखता है
“चंदा-रजनी”
गली-गली में भटक रहा है एक दीवाना रजनी का
शाम ढले ज्यूँ घर आता है रूठा साजन सजनी का
तारे-जुगन यार है इसके इन तीनो की तिकड़ी है
ठंडी ठंडी पवन बताती के चंदा-रजनी जिगरी है
रजनी की बाहों में जब उसकी आंखे लग जायेगी
हवा थपकियां देगी उसको रजनी गीत सुनाएगी
दिन में जब इस घर का ताला सूरज चाचा खोलेंगे
आंखों में अंगारे होंगे वो गुस्से मे कुछ बोलेंगे
तब रजनी के गालो पर हल्की लाली आ जायेगी
चंदा भी शर्माएगा और रजनी भी शर्माएगी
हाथ पकड़ भागेंगे दोनों दूजे कोने जाएंगे
सूरज चाचा जब न होंगे शाम ढले फिर आएंगे
इनका साथ अमर है इनकी प्रीत अमर है बरसो से
चंदा और रजनी का जग में नाम अमर है बरसो से
“नज़्म”
किसी रोज छत के उस हवादार कमरे में
जहां गिर रही हो चाँदनी झरोखों से
और चूमती हो शेल्फ के झूठे परिंदों को
तुम खींचती हो कैनवास पे रंगीन चेहरों को
और एक कोने में बैठकर
मैं लिख रहा हूँ जान की बेजान बातो को
सोचता हूँ यूँ ही कभी उस सर्द फर्श पर
सो जाओ तुम मेरे लफ़्ज़ों में लिपटकर
और मैं तुम्हारी कूचियों संग करवटें बदलू
नज़्मरात के उस स्याह कागज पर मेरी उंगलियों से
तुम बनाओ इश्क की ज़िंदा पैकरी, और
मैं लिखू वो नज़्म तेरी पीठ पर
जिसको पढूं मैं और रटू मैं उम्रभर….
रे चन्दा!
Listen my rajasthani Poem In my voice…
“मैं और तू”
जान के घरौंदे पर उल्फतों की बारिश में
आके चल भिगोये खुद को यूं
मैं और तू…….
अब जमाने से हो क्यूँ भला वास्ता
हमने पा ही लिया इश्क का रास्ता
इश्क वालो को क्या आरजू
मैं और तू……
कल रहे ना रहे हाथ गर हाथ में
हम रहे ना रहे इस तरह साथ में
छोड़ कर सारे गम ले सुकूँ
मैं और तू……
“किनारे” My Words My Voice
Listen full poetry on youtube
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