And Now taking rest for 1-2 mnthsFrom social media some tasks are misssing in real life..Thanks for your love…I will come with More good poetry….God bless you all..:):):)
Month: August 2016
“काश!”
काश यूँ भी होता के
हर बरस कैलंडर की तरह बदल पाते हम
अपना नसीब
बारिशो में बरसती रोटियाँ
सितारों की झालर लगती हमारे घर में
सूर्य आँगन के परिंडे में पानी पीता
चाँद लेटता छत की चारपाई पे
बादलों को पकडके निचोड़ते घर के बच्चे
मंदिरों में पत्थरों की जगह खुद खूदा होता
और रगों में खुन नहीं मोहब्बत बहती
“उदासी”
1.मेरे चेहरे ने आज उदासी नहीं पहनी
उदासी नहीं पहनी तो बहुतो को खटका मैं
मुझसे जो पूछे अगर वो तो बताऊ के बात क्या है
फुसफुसाने में लगे है कानो में एक दूजे के
झर रहे है चुपचाप उनकी आँखों से
वो लफ्ज़ जो कहते है की मैं
उन्हें अब अच्छा नहीं लगता
2.आईने पे जमी है गर्द
और
मेरे चेहरे पे उदासी
गर्द को तो मैं मिटाना अगर चाहू
तो मिटा सकता हूँ
और उदासी!
सोचता हूँ की मिटा दू
सोचता हूँ और भुला देता हूँ
3.उदासी तितलियों की तरह आ बैठी है
मेरा चेहरा मानो कोई गुलाब हो जैसे
4.उदास रहना मेरा बेसबब नहीं प्यारे
मैं बावफा था एक बेवफ़ा से इश्क में
5.उदास रहने को न हो सबब जिस दिन
बेसबब उस रोज मैं बहुत उदास रहता हूँ
6.एक तो मोहब्बत और दूजी वफादारी भी
उदास रहने को तो काफी है बस सबब इतने
“मौत”
मौत आकर मिल कभी,मौत आकर मिल कभी
जब मैं रहू खामोश बैठा,आँख से जब नीर टपके
होंठ मेरे कंपकंपाये,पाँव ठिठके लडखडाये
जोर से रोना में चाहू और न मिला कन्धा कभी
उस वक़्त आकर मिल कभी, मौत आकर मिल कभी
मौत मेरी माँ सी हो जा और ममता वार दे
मैं तेरी साडी से खेलु तू मुझे पुचकार दे
मैं थका आउ कहीं से और तू मुझे गोदी में लेले
तेरी थपकियों से इस तरह सोउ के न जागु कभी
उस वक़्त आकर मिल कभी, मौत आकर मिल कभी
मौत तू स्टेशन का बरगद न गिरा न गिर सकेगा
तू खड़ा कबसे न जाने,जाने कब तक तू रहेगा
खेलना चाहू मैं तेरी ओट में छुप्पमछुपाई, फिर
मैं छिपू ऐसा किसी के हाथ न आऊँ कभी
उस वक़्त आकर मिल कभी, मौत आकर मिल कभी
मैं जो शीशा हो गया मौत तू पत्थर सी हो जा
मैं किसी के घर में रोशनदान से चिपका रहूँ
तू किसी के हाथ से उछले और मुझपे गिरें
टूट के बिखरूं मैं ऐसा न मिलु खुद से कभी
उस वक़्त आकर मिल कभी, मौत आकर मिल कभी
मौत मेरी प्रेमिका बन जो अब तलक बस ख्वाब में है
बिस्तरों में रोज रातों को लिपटता हूँ मैं जिससे
ठोकरे खाकर भी जब मैं उसे पा लूं कभी
मेरे जन्म का वो चरम होगा तू भी आ मिलना तभी
उस वक़्त आकर मिल कभी, मौत आकर मिल कभी
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Lag ja gale..:)
चिड़िया
बहुत दिनों से घर का आँगन सुना सुना है
देहरी फीकी-फीकी है दीवारें उखड़ी उखड़ी सी
वो चिड़िया जो दिनभर घर में चहकी चहकी फिरती थी
मेरी छत को जिसने खुदके घर जैसा ही कर डाला था
वो जो खुद को ही शीशे के आगे चोंच चुभाया करती थी
बैठ परींडे के ऊपर जो पंख भिगोया करती थी
जिसने कोने कोने को टूटे फाहों से भर डाला था
जिसने मुझको भी मानो कोई चिडे सा कर डाला था
कुछ दिन पहले वो एक वहशी गिद्ध से प्यार लगा बैठी
प्यार कहू क्या जैसे खुद ही खुद के पंख जला बैठी
कई दिनों से दिखी नहीं है शायद वो भी चली गयी है
पर मैं तो ये भी जानूं हूँ की गिद्ध भला कब अपने होते है
ये प्यार मोहब्बत ओ चिड़िया! सुनलो सायें या सपने होते है
मेरी दुल्हन,मेरी कविता
मेरा मन जितना प्यार करे
ये भावो से साकार करे
फिर शब्दो का सिणगार बना
नस नस पे मीठा वार करे
रस की छलकाती गगरी जब
लगती है ये पणिहारिन सी
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
बन कर के कोई क्षत्राणी,ये दुष्टो का संहार करे
नयनो को ढाल बनाए फिर पलको को तलवार करे
पहने मुण्डो की माला जब
बन जाती समर भवानी सी
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
तन से पुरी मधुशाला है,मन से ये भोली बाला है
केशो मेँ अंधियारा रातो सा चेहरे पर गजब उजाला है
होँठो का तिल मानो करता हो चुंबन की अगवानी सी
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
मिसरी सी मीठी बोली है,संग रखती स्नेह की झोली है
इसके पहलु मेँ हर सांझ दीवाली, हर रोज सवेरे होली है
बासंती रंगो मेँ लगती है ये कोई मदमस्त जवानी सी
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
रुठे तो नादान लगे,उसकी प्रीती एहसान लगे
मैँ सहज सरल सा मानव हुँ वो अवतारी भगवान लगे
मै राम हुँ तो वो शबरी है
हुँ किशन तो मीरा दीवानी सी
मेरी दुल्हन, मेरी कविता
मेरी दुल्हन, मेरी कविता