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जहर

मेरी कमीज का पहला बटन
रोज टूट जाता है
मेरा मोबाइल अक्सर हैंग हो जाता है
मैं जब भी
तुम्हारी डीपी देखने की कोशिश करता हूँ
मेरी किताब को भी एक बार
लगाया था सीने से तुमने
उसके गत्ते का रंग उतर गया है
तुमने जो कप दिया था तोहफे में
अक्सर छिटक जाता है मेरे हाथों से
तुम्हारे भेजे हुए खतों की स्याही उड़ रही है
और मेरे जिस्म के वो हिस्से
जहाँ चूमा था तुमने मुझे
अब काले पड़ रहे है
सच कहती थी तुम
जहर मिट्टी में भी छेद कर देता है

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Euthanasia

Euthanasia हाँ इच्छामृत्यु
कितना खुबासूरत लफ्ज़ है
क्या ये अधिकार नहीं हो सकता
उस मुल्क में जहाँ
हर कोई लड़-रहा है अपने लिए
यहाँ कुछ ज़िंदा लाशें भी तो है
जो चाहती है अपने माथे पर
मौत का ठप्पा
करोडों के मुआवजे
1-2 बीघा जमीन
सरकारी नौकरी
वो जो नहीं पा सकता है इस जन्म में
अगले जन्म की कोशिशों की खातिर
क्या उसके पिंजरे नहीं खोल सकते हम
वो जो बीसियों बीमारियों के बाद
अकेला पड़ा है किसी सफाखाने के
बदबूदार बिस्तर पर
उसे गर दे दें मौत की हामी
कितने आराम से मरेगा वो..
जीने का अधिकार भी तो है
मरने का क्यूँ नहीं
सांसे हमारी कब रुके
हमारा फैसला क्यूँ न चले?
वक्त ले कर के देखना, ओ किताबों वालो!
दर्द से कांपतें किसी मन को
मौत कितना सुकून देती है

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बीमार

और फिर यूँ हुआ कि
मैंने तलाशी ले ली
मेरे बिस्तर पर मुद्दतों से पड़े हुए
उस बीमार की,
जो कर रहा है नज़्मों की उल्टियां
कई बरसों से,
बस एक दिन खुशी-ख़ुशी में
गटक लिए थे जिसने
नर्म होंठो के शफक वादे,
वो कि
जिसकी आंखों से खून झरता है
हाँ उसी बीमार के तकिये में
छुपे हुए है हज़ारों खत
चारागर कहते है कि ये बस
इन्हीं पे ज़िंदा है,
वो इंतज़ार कर रहे हैं
खतों के हरे होने का
और मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
कि मेरा बिस्तर कब खाली होगा

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इल्तिजा

न जाने क्यूँ मगर फिर भी
मुझे ऐसा लगता है कि
तुम्हें फ़क़त जरूरत थी किसी की
या फिर तुम्हे चाहिए था कोई ऐसा
जो कि तुम्हारी सहेलियों के
कुछ दोस्तों की तरह
सुबह-शाम कर सके मैसेज
सुना सके तुम्हे गाने
दे सके तुम्हें तोहफे
कुछ लोगों की फ़ोन स्क्रीन पर
जिस तरह वो heart वाला स्माइली
ब्लिंकता है ठीक वैसे ही तुम भी
चाहती थी किसी का मैसेज
उस पार से…
मैं तुम्हारी मोहब्बत हूँ या जरूरत
मुझे मालूम नहीं
मगर कभी मेरे बाद
अकेले में जो सुनो तुम
वो
“बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
वाली नज़्म…
इक इल्तिजा है तुमसे
उस वक्त तुम्हे
मेरी खातिर रोना होगा

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“उघाड़ी पीठ”

कितनी मिन्नतों के बाद पहना है तुमने
मेरा पसंदीदा सफेद सूट
बंधेज की चुन्नी
और उसमें झांकती हुई
तुम्हारी उघाड़ी पीठ
और वो दो तीखी हड्डियां
ठीक वैसे ही दिखती है
जैसे किसी गुलाब पर उगे हुए होते है कांटे
फ़क़त मुझे ही आता है
इन कांटों को सहलाकर
उस फूल तक पहुंचना
वो फूल जो रातों में अक्सर
एक फ़ोटो फ्रेम बन जाता है
जहाँ मेरे होंठो की तस्वीरें कैद रहती है

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“माजी”

1.
जिस तरह तुमने जलाई है मेरे माजी की कमीज
मुझे डर है कि जब तुम नहीं रहोगी साथ मेरे
मेरा आने वाला कल, तब
फूंक न दे
तुम्हारी दी हुई किताबें!

2.
चुपचाप खड़ा हूँ ठिठका हुआ
यादों के चौराहें पर
जो भी आता है फूंक देता है
मेरी हयात की डायरी के भरे हुए पन्ने
अब फ़क़त गत्ते के सिवा
कुछ भी नहीं बचा हुआ उसमें
जुबाँ पर आग लिए जो खड़ा है तू
मेरे सामने ऐ आज मेरे!
तुझे यकीन है कि तू ताउम्र ठहरेगा?

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“चश्में का डब्बा”

तुम्हें तो ऐनको से प्यार था बस
वो मुझको पालने वाली कहां है
मेरे चश्मे का डब्बा पूछता है
मुझे संभालने वाली कहां है

तुम्हारी ही कोई बुशर्ट पहन कर
तुम्हारे सामने इठला के चलती
तुम्हारे वास्ते कॉफी-दवाएं
न जाने साथ क्या ले ले के चलती
तेरे गुस्से को अपने मौन में भर
हलक में डालने वाली कहां है

वो छोटे कद की एक प्यारी सी गुड़िया
की जिसके वास्ते तुम थे हिमालै
तुम्हारे चूमने के वास्ते जो
तुम्हारे हाथ में हाथों को डाले
तुम्हारे चाह की हामी का मिसरा
नज़र से बाँचने वाली कहां है

अकेले बाग में बैठे हुए जो
तुम्हे ही ताकती रहती है अक्सर
तुम्हारे बोल ही बोली है उसकी
तुम्हारी बाँह है सिसकी का मन्दर
वो अपनी भूल को गलती समझ के
वो खुदको डांटने वाली कहां है

तुम्हारे साथ एक होटल में बैठे
तुम्हारे गाल सहलाये थे जिसने
तुम्हारे वास्ते दुनिया से छुपके
तुम्हारे गीत भी गाये थे जिसने
तुम्हारी गोद में जो रो पड़ी थी
वो आंसू ढांपने वाली कहां है

तेरी तस्वीर का पूरा खजाना
वो जिसके फ़ोन में है कैद रहता
तेरी बातें-तेरे किस्सों का दरिया
वो जिसके सांस की खुशबू में बहता
नसीबों से मिली थी जो तुम्हें वो
बलाएं टालने वाली कहां है